चुनाव आयोग की तरफ से जब भी चुनाव का आयोजन किया है तो इससे पहले आदर्श चुनाव आचार सहिंता को लागु किया जाता है।
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सबसे पहले आदर्श चुनाव आचार सहिंता की शुरुवात सन 1960 में केरल के एक आम चुनाव में हुआ था और सन 1967 के लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में भी चुनावी आचार सहिंता का पालन किया गया था।
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आदर्श चुनाव आचार सहिंता इसलिये भी लागू किया जाता है जिसकी मदद से चुनाव की पूरी प्रक्रिया स्वतंत्रत और निष्पछ रूप से हो सके।
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आचार सहिंता इसके तहत कुछ नियमो को तय किया गया है चुनावी प्रक्रिया के दौरान सभी राजनीतिक पार्टियों को इसका पालन करना होता है।
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आचार सहिंता के दौरान कोई भी सत्ताधारी पार्टी सरकारी योजना, शिलान्यास, भूमि पूजन या लोकार्पण भी नहीं कर सकता है।
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कोई भी राजनीतिक पार्टी धर्म या जाति के आधार पर वोट नहीं मांग सकता है और न ही इस तरह की गतिविधियों में शामिल हो सकता है।
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इसके साथ ही कोई भी राजनीतिक दल सरकारी घर, गाड़ी या विमान अपने चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता है।
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किसी भी व्यक्ति के निजी जमीन, घर या कार्यालय की दीवार पर चुनाव प्रचार के दौरान उसके अनुमति के बिना किसी भी राजनीतिक पार्टी द्वारा बैनर, पोस्टर या झंडा नहीं लगाया जा सकता।
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अगर कोई राजनीतिक दल अपना चुनावी रैली या जुलुस निकलना चाहती है तो उसे सबसे पहले पुलिस से अनुमति लेना अनिवार्य होता है।
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कोई भी राजनीतिक पार्टी किसी भी मतदाता को अपने पछ में वोट कराने के लिए डरा या धमका नहीं सकता है। इस तरह के और भी कई नियम है जो समय समय चुनाव आयोग द्वारा जोड़ा जाता है।